हास्य व्यंग्य

चांद पर प्लाट का लफड़ा

चांद पर प्लाट का लफड़ा
“सर, मुझे एक कम्प्लेंट करना है।”
“हां,तो कर दो”,उन्होंने बगैर सिर उठाए ही कहा।
“सर, मैंने छः महीने पहले भी डिजीटली एफआईआर दर्ज की थी और तभी से लगातार थाने के चक्कर लगा रहा हूं लेकिन मेरी सुनवाई नहीं हो रही है। इसीलिए आपके पास निवेदन करने आया हूं। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे न्याय दिलवाएंगे।”
इस बार उन्होंने थोड़ा सिर ऊपर उठाया और बोले-“हूंअ,क्या शिकायत है आपकी!अभी थोड़ा सिस्टम काम नहीं कर रहा है।ओरली ही बता दो।”
“सर, मुझे मेरे प्लाट का कब्जा चाहिए।”
“तो भाई, जिससे खरीदा है,उसी से कब्जा भी प्राप्त करो।”
“नहीं सर, प्लाट मैंने नहीं खरीदा था,मेरे दादाजी ने खरीदकर मेरी दादी को विवाह के अवसर पर गिफ्ट किया था।”
“तब तो उन्होंने कब्जा लिया ही होगा।अब तुम कब्जा प्राप्त करने वाले कौन? यदि कब्जा नहीं मिला था तो फिर उस समय तुम्हारे पिता ने प्लाट का कब्जा क्यों नहीं लिया। क्या उसपर सम्पत्ति का विवाद है या किसी दूसरे ने उसपर कब्जा कर लिया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह प्लाट किसी दूसरे को भी बेच दिया गया हो और उसने कब्जा कर लिया हो।”
“नहीं सर,असल में मेरे दादाजी को ही उस प्लाट का कब्जा नहीं मिल पाया था और उस प्लाट को खरीदने और कब्जा लेने के चक्कर में सरकारी दफ्तरों के चक्कर खा-खाकर उनके जूते-चप्पल घिस गए और घर के भांडे-बर्तन तक बिक गए।बाद में पिताजी भी इसके लिए यहां-वहां भटकते रहे।”
“तो क्या कालोनी गवर्नमेंट से एप्रूव नहीं थी।यानी रेरा की स्वीकृति, स्थानीय प्रशासन की अनुमति और विकास कार्य के बगैर प्लाट काटे गए थे।”
“नहीं सर, वास्तव में प्लाट तो चांद पर काटे गए थे। बड़े-बड़े लोकलुभावन परिदृश्य दिखाए गए थे।जिस कंपनी ने प्लाट बुक किए थे, बाद में वह बंद हो गई। अब उसके कोई पदाधिकारी मिल नहीं रहे हैं। मैंने अपने आवेदन में सब स्पष्ट रूप से लिखा है।”
उसका आवेदन पत्र पढ़ने के बाद वे कुछ देर मुस्कराए और फिर बोले-“देखिए बसंल जी,आपकी शिकायत तो वाजिब है लेकिन अब वह कंपनी ही बंद हो चुकी है और जिन्होंने कंपनी बनाई थी,वे भी मर खप गए हैं तो कैसे आपके प्लाट का कब्जा आपको दिलवा सकेंगे।और वैसे भी आपके दादाजी ने अपनी शादी के अवसर पर आपकी दादी के नाम चांद पर बुक किए गए प्लाट का अनुबंध ही तो किया था। उसकी रजिस्ट्री और प्लाट के आधिपत्य के कोई पेपर तो आपके पास हैं नहीं।और फिर जैसा कि आपने अपने आवेदन में लिखा है कि देश की जिस कम्पनी का उस समय अमेरिकी कंपनी से मिलकर प्लाट बेचने की योजना थी,बाद में उससे अमेरिकी कंपनी ने समझौता तोड़ दिया था और अमेरिकी कंपनी की जगह चाइनीज कंपनी से उसका समझौता हो गया ।ऐसे में किसके खिलाफ मामला दर्ज करें! वैसे भी इन चीनियों का कोई भरोसा भी तो नहीं है।”
“आपकी बात तो सही है सर, लेकिन फिर भी कम्पनी के कागजात तो हमारे पास हैं ही! बाद में दादाजी ने उससे रिवाइज्ड एग्रीमेंट भी करवा लिया था।”
“हां तो! कागज पर तो कितने ही काम हो रहे हैं। शासन की पेपरलैस योजना के बाद भी सरकारी दफ्तरों में पेपर ही आज भी कार्रवाई हो रही है।हम तो बिना कागज के भी जांच कर करके थक चुके हैं भाई।कागजी खानापूर्ति से ही यदि काम चल जाता तो हम भी आपको चांद पर कागजों में ही प्लाट का कब्जा दिलवा देते। बहरहाल, यह बताइए कि क्या तब उस कंपनी ने देश की सरकार से चांद पर कालोनी विकसित करने और आबादी बसाने की वांछित अनुमति प्राप्त कर ली थी।”
“सर,मूल योजना तो अमेरिकी कंपनी की थी जिसे बाद में चाइनीज कंपनी ने टेक ओवर कर लिया था।सुना तो यह भी गया था कि चांद पर उस जमीन पर रूस ने कब्जा कर लिया था।”
“तब तो यह भी हो सकता है कि आपके दादा-दादी ने पहले ही चांद पर प्लाट का कब्जा ले लिया हो और बगैर किसी को बताए वे लोग वहीं रहने चले गए हों!अब देखो यह चन्द्रलोक और भूलोक के अलावा आपका पारिवारिक मामला लगता है। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।”कहकर ऑफिसर फिर सिर झुकाकर अपने काम में यानी लैपटॉप पर तीन पत्ती खेलने में व्यस्त हो गए।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009