ग़ज़ल
जिस तरह भी थी जवानी बीत गई।
इक कहानी थी कहानी बीत गई।
ख़ूबसूरत निर्झरों के वेग में,
सूखा पानी तो रवानी बीत गई।
चमकता तारा गगन से टूटा क्या,
आंख झवकी ज़िंदगानी बीत गई।
पतझड़ी में भी शगूफे ढूंढ़ते,
जबकि सारी रूत सुहानी बीत गई।
खत्म हुई लहरें तो ठहरीं किश्तियां,
इक नदी की मिहरबानी बीत गई।
डूब गया सूर्य अंधेरा छा गया,
बात ‘बालम’ थी पुरानी बीत गई।
— बलविन्द्र ‘बालम’