लघुकथा

आदर्श बेटा

गत वर्ष माँ की मृत्यु के बाद पिता पुत्र एक दूजे का सहारा बन जीवन की गाड़ी आगे बढ़ा रहे थे। पिता बेरोजगार बेटे के भविष्य और पुत्र पिता के स्वास्थ्य और देखभाल को लेकर चिंतित रहते थे।
इसी बीच समय ने करवट ली और पुत्र को विदेश में अच्छे पैकेज का बहुप्रतीक्षित आमंत्रण मिला। जिसे पुत्र ने पिता से छिपा लिया। क्योंकि वो पिता को किसी और के भरोसे या वृद्धाश्रम में छोड़कर जाने का इरादा नहीं रखता था।
अपने आप से लंबी जद्दोजहद के बाद उसने अपने भविष्य का फैसला ऊपर वाले के हाथों में छोड़ अपने पुत्र धर्म के पालन का कठोर निर्णय ले लिया।
फिर भी उसके मुखमंडल पर बेहद सूकून का राज उसके निर्णय की गंभीरता की बानगी बन चमक रहा था।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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