दोहरी मार फेसबुक का प्यार
सुबह-सुबह श्रीमती जी जब चाय लेकर आई ,दुखी आत्मा को फेसबुक पर व्यस्त देख झल्ला उठी, “क्या सुबह-सुबह मोबाइल लेकर बैठ जाते हो| मैं तो तुम्हारी इस आदत से तंग आ गई हूं |” वह बड़बड़ाते हुए अंदर चली गई और मैं दुखी आत्मा फिर से फेसबुक पर अभी कुछ सोच ही रहा था कि अचानक मैसेंजर पर उसका मैसेज देखकर ऐसे खिल गया जैसे फूल गोभी का फूल|
उधर से मैसेज आया “क्या कर रहे हो?”
मैंने भी जल्दी से प्रति उत्तर में लिखा –“चाय पी रहे हैं, तुम भी पियोगी ?”
उधर से मैसेज आया –“आओ मिलकर चाय पीते हैं|” उसका आमंत्रण सुनकर गुलाब के फूल की तरह खिलने की बजाय मैं पतझड़ की पत्तियों के जैसे ऐसे सूख गया ,जैसे उस पर पाला की मार पड़ गई हो| दुखी आत्मा ने उसे दूसरी बातों में उलझाने के उद्देश्य से कहा- ” अभी नहीं, फिर कभी आज मैं बहुत व्यस्त हूं |”
मैंने व्यस्त पर कुछ जोर देकर इस प्रकार बताया जैसे दुनिया का सबसे व्यस्त इंसान मैं ही हूं |
उधर से मैसेज आया अच्छा अपनी एक न्यू पिक भेजो |(अपनी एक नई फोटो भेजो!)
दुखी आत्मा ने झट से अपने कॉलेज के दिनों की एक प्यारी मुस्कान बिखेरती सुंदर सी फोटो भेज दिया| उधर से मैसेज आया-” बहुत सुंदर लग रहे हो|”
दुखी आत्मा ने भी एक स्माइल इमोजी भेज दिया |अभी फेसबुक के प्यार के समुद्र में गोते लगा ही रहा था कि श्रीमती जी की बेसुरी आवाज फिर कानों में ऐसे घुली जैसे 100 घंटियां एक साथ बजा दी गई हो| उन्होंने मेरे हाथ से मोबाइल को दूर रखते हुए कहां -“ऑफिस जाना है कि यहीं पर ही पसरे रहोगे?”
दुखी आत्मा ने एक मुस्कान बिखेरते हुए कहां -“आज बड़ी सुंदर लग रही हो |क्या बात है पर जब गुस्सा करती हो तो बिल्कुल टमाटर जैसे लाल हो जाती हो|” दुखी आत्मा की इस बात को सुनकर श्रीमती जी शरमाती हुई बोली–” आप भी ना आपकी आदत नहीं जाएगी|”
दुखी आत्मा दोनों ओर से संतुष्टि का भाव चेहरे पर लिए–” मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू |” गुनगुनाते हुए बाहर निकल गया |
— रीता तिवारी “रीत”