दोहे
जिन्हे बांटनी थी यहां , सरकारी खैरात
मिल जुल कर सब खा गये,आवंटित सौगात
हकदारो को दे दिया , ठेगें से सम्मान
ऊपर से पहुंचा नही,नीचे तक अनुदान
यहां वहां सब फेकते, घर का कूड़ा गन्ध
स्वच्छता को भूल गये,साफ सफाई बन्द
इक बारिश ने खोल दी,नगर निगम की पोल
नदियों सी लागे सड़क, दिखे न गड्डे होल
कल ही बन तैयार की,बूंदे बरसी आज
सड़क टूट के कह रही,देखो कैसा काज
दीन हीन हालत लिए,फिरते यहां किसान
अन्नदाता के स्वयं के,रिक्त पड़े खलिहान
— शालिनी शर्मा