कविता

चुप बैठ के शोक मनाओ ना

अनगिनत यहाँ रातें आयीं सूरज ने दमकना छोड़ा क्या
न जाने कितने भोर हुए, चंदा ने चमकना छोड़ा क्या
कितने विखरे ! कितने टूटे !
फिर भी फूल खिले होंगे, टूटी कलियां मिल जाएंगी
उपवन देख के आओ ना
चुप बैठ के शोक मनाओ ना

क्यों इतना तुम टूट गए हो, खुद से क्यों तुम रुठ गए हो
पतझड़ तो आते रहते हैं, तट सागर के कुछ कहते हैं
रोज डूबते ! रोज उबरते !
फिर भी न लहरों से डरते, एक दीप बुझ गया दीवाली का
तम के (राज) को मान लिया, और भी कितनी शिखा जल रही
उनसे उम्मीद लगावो ना
चुप बैठ के शोक मनाओ ना

एक घाव से नौवाख्वानी शुरू, नासूर लिए सब चलते हैं
तुम हवा के झोंके से उखड़े, कुछ तूफानों में पलते हैं
न लंगड़ा हैं ! न लूला है !
तो तू क्यों यहाँ डरता है, जो कोई नही कर पाया है
यहाँ तू ओ कर सकता है, शुर वीर है ! उठ जा तू !
बैठ के वक्त गवाओ ना
चुप बैठ के शोक मनाओ ना

राजकुमार तिवारी “राज”

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782