कविता

हे! प्रिये मैं क्या करूँ,

हे! प्रिये मैं क्या करूँ,

बेवजह तू पड़ गयी, बेकार के झमेलों में
देखो अब तुम फंस गई, दूषित मन के मेलों में
कौन इमदाद करेगा अब, इंसानियत बिकती यहां
मानवता सारी रौंद गयी, हैवानियत टिकती यहां
तू ही बता ये जिंदगी!
तेरा अब मैं क्या करूँ
हे! प्रिये मैं क्या करूँ,

कैसे बचें चराग़ अब, फानूस ही सब जल गए
जिसको अपना समझे थे, चापलूस वो निकल गए
ये जिंदगी तू देख उठकर! सियासत में फंस गई
थी कोई सोने की चिड़िया, ओ दलदल में धंस गयी
मतलब के इस “राज” में !
कहाँ तेरी फरियाद करूँ
हे! प्रिये मैं क्या करूँ,

राजकुमार तिवारी “राज”

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782