कविता

खूँटी पर टँगी औरत

विदा हो गई, खूँटी पर टँगी औरत
जिस पर कोई भी कुछ टाँग देता
खूँटी कुछ नहीं बोलती
कभी पुराना कोट,
कभी नई कमीज
तो कभी धुँधली तस्वीर
जो नई थी वर्षों पहले
अब,चटके हुए काँच वाली तस्वीर
देख, खूँटी मौन है
इस दीवार पर लगने से पहले
चोट सहा था हथौड़े का
विरोध की हर आवाज़ पर
तीव्र प्रहार सहा था
वर्षों तक टँगी रही घर की दिवार पर
एक खूँटी, कई बोझ
हिलती रही पर फिर टाँग दी जाती
आज विदा हो गई, सुनते-सुनते
“सुहागिन जा रही,कितनी है भाग्यवान”
नर्क और स्वर्ग की दूरी तय कर गई ।
— डाॅ अनीता पंडा

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected]