आघात कितना भी गहरा हो
तुमने भले ही ठगा हो हमको, हम बदले में ठगी न करते।
आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।
तुमने भले ही हमें फसाया।
हमने तुम पर प्यार लुटाया।
नहीं उजाड़ा कभी किसी को,
प्रेमी संग है तुम्हें बसाया।
अपने बंधन काट रहे हम, तुमसे कोई हँसी न करते।
आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।
धोखे से नहीं रिश्ते बनते।
कानूनों से विश्वास न पलते।
विश्वासघात कर प्रेम चाहतीं,
तलवारों से पुष्प न खिलते।
जिसकी थीं, उसको ही सौंपी, किसी की चीज कभी न हरते।
आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।
समय बहुत अब बीत गया है।
हमारा नहीं कोई मीत भया है।
तुम्हारी चोट थी इतनी गहरी,
धोखा तुम्हारा जीत गया है।
कपट कपट का मित्र न होता, कपटी से भी कपट न करते।
आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।