लघुकथा

मायका

रमा अपने घर में सबसे छोटी है दो भाई मयूर और प्रेम बड़े थे दोनों की शादी हो जाती है अब रमा के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था माता पिता ने उसके लिए कभी वो कहते हम तुम्हें  इसी शहर में शादी करेंगे हमे तुम्हारी याद आये तो तुमसे मिल सके
रमा की शादी उसी शहर में कर दी वो वहाँ बहुत खुश थी  एक दिन उसके माता पिता का कार एक्सीडेंट हुआ जिसमें दोनों चल बसे रमा बहुत रोती थी उनको याद बहुत करती थी
दोनों भाई पैसा कमाने के चक्कर मे रमा को भी भूल गए कभी  कभी रमा घर आती तो अपनी भाभियों का व्यवहार देखकर दुखी होती एक दिन रमा अपने मायके आयी हुए थी दोनों भाभी आपस में बात कर रही थी
” रमा तो आये दिन यहाँ आती रहती है हम कब तक इसका बोझ उठाते रहेंगे आती है तो खर्चा भी होता है एक शहर में तो इसका मतलब ये नहीँ है जब मन करें आ जायो
यह बात सुनकर रमा तेज तेज रोने लगी  और सोचने लगी मेरा घर आँगन तो मम्मी पापा के साथ ही चला गया अब ये मेरा घर आँगन नहीं है  मुझे पराया होने का आज अहसास हो गया
अब मैं यहाँ कभी नहीं आऊँगी
बेटी के मायके में जब माता पिता होते  है  तब तक ही मायका है उसके बाद बेटी का घर आँगन छूट सा जाता है
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश