मत करो उपहास मेरा
मै तुम्हारी सर्जना हूँ !
जो समर में साथ दे दे
मेघ – सी मैं गर्जना हूँ !
मत समझना चूडि़यों से
पायलों से बंध गयी हूँ
मैं वही हूँ कालिका जो
पार देहरी कर गयी हूँ !
बाँध कर राखी कलाई
नेग पाती हूँ , .बहन हूँ
दो कुलों की लाज हेतु
मैं सहिष्णु , निर्वहन हूँ !
ओस की बूँदों सी शीतल
चाँद कह कह लो चाँदनी
प्रीत की और रीत की
मैं हूँ सदा अनुगामिनी !
जन्मदात्री , माँ से बढ़कर
कौन है पदवी यहाँ पर
सब अघाते इस धरा से
कौन जाता आस्माँ पर !
— सीमा शर्मा सरोज