राजनीति

पत्रकारिता एक मिशन

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दुनिया प्रशंसा के साथ देखती है कि कैसे लोकतांत्रिक मूल्यों,नियमोंपर क्रियात्मक कार्यवाही सदाचार से लोकतंत्र अपने भविष्य का रास्ता तय करता है और दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा का डंका बजता है। 135 करोड़ लोगों द्वारा दिया गया फैसला हर दल, व्यक्ति और प्रत्याशी को स्वीकार होता है ऐसे लोकतंत्र के मंदिर, संसद भवन की सीढ़ियों पर माथा टेक कर अंदर जाते हुए पीएम महोदय को सारे विश्व में टीवी चैनलों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देखा था। इस लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। न्यायपालिका, कार्यपालिका विधायिका और मीडिया।
साथियों बात अगर हम लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ मीडिया की करें तो इसका रोल भी कम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि यह इनपर निगाह रखने वाला स्तंभ हैं, जिसका काम जनहित में सूचनाएं दिखाना और लोक व्यवस्था का निर्माण कर समाज को एक सूत्र में बांधे रखने की जिम्मेदारी मीडिया की है, जिसमें प्रिंट मीडिया का स्वतंत्रता संग्राम काल से ही महत्वपूर्ण रोल रहा है।
परंतु वक्त का तकाज़ा है बदलते परिपेक्ष में बढ़ते प्रौद्योगिकी युग में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिय की एंट्री हुई, फिर आगे बढ़ते हुए इन्हें निजी क्षेत्रों को दिया गया, विभिन्न एपों, यूट्यूब, चैनलों सहित मीडिया क्षेत्र का भरपूर विकास हुआ जिससे प्रिंट मीडिया को फ़र्क पड़ा। जिससे कुछ बंद तो कुछ की हालत खस्ता तो कुछ ने बदलते परिपेक्ष में डिजिटल मीडिया की तरफ कन्वर्ट हुए परंतु इस बदलते क्रम में मीडिया की ज़वाबदारी, जिम्मेदारी भी बढ़ते चली गई और सरकारों को इनपर नियंत्रण के लिए कानून, नियमन, विनियमन की जरूरतों के अनुसार कानून कायदे बनाए गए जिसके आधार पर सैकड़ों चीनी एप्स पर बैन लगा!! और दो दिन पहले ही दस भारतीय और छह पड़ोसी मुल्क के यूट्यूब पर बैन लगा है!!
साथियों बात अगर हम मीडिया की जवाबदारी की करें तो यह लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने, एक स्वतंत्र बंधन मुक्त मजबूत और जीवंत मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है जिसकी प्रमाणिकता और विश्वसनीयता पत्रकारिता की नींव है, जिसमें हमें समाचारों और विचारों के बीच एक लक्ष्मण रेखा का सम्मान करना आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में ज़रूरी है। क्योंकि पत्रकारिता एक मिशन की तरह है इसमें जनहित सर्वोपरि है। समाज को उनका हक़ दिलाने, कुनीतियों,भ्रष्टाचार, अव्यवस्थाओं पर नज़र रख सुव्यवस्थित लोक व्यवस्थाके निर्माण में सकारात्मक योगदान देकर समाज को एक सूत्र में बांधे रखने की जिम्मेदारी मीडिया पर है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 25 अप्रैल 2022 को यूरोपियन आयोग की अध्यक्षा के रायसीना डायलॉग 2022 दिल्ली के मौके पर विचार व्यक्त करने की करें तो मीडिया के अनुसार उन्होंने कहा कि हर पांच साल में जब भारतीय संसदीय चुनावों में अपना वोट डालते हैं, तो दुनिया प्रशंसा के साथ देखती है क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने भविष्य का रास्ता तय करता है। 1.3 अरब लोगों द्वारा किए गए फैसलों का परिणाम दुनिया भर में गूंजता है। जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत-यूरोपीय संघ मौलिक मूल्यों और सामान्य हितों को साझा करते हैं। साथ में हम प्रत्येक देश के अपने भाग्य का निर्धारण करने के अधिकार में विश्वास करते हैं। हम कानून और मौलिक अधिकारों के शासन में विश्वास करते हैं। हम मानते हैं कि यह लोकतंत्र है जो नागरिकों के लिए सबसे अच्छा उद्धार करता है।
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दिनांक 24 अप्रैल 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार अपने संबोधन में उन्होंने कहाकि जब कानून के संवैधानिक शासन को मजबूत करने की बात आती है तो एक स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका का पूरक होता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक स्वतंत्र, बंधनमुक्त व निडर प्रेस के बिना कोई मजबूतऔर जीवंत लोकतंत्र बचा हुआ नहीं रह सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत के लिए अपने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने को लेकर एक मजबूत, स्वतंत्र और जीवंत मीडिया की जरूरत है।
साथियों इसके अलावा उन्होंने मीडिया में मूल्यों के पतन को लेकर सावधान भी किया। उन्होंने निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रिपोर्टिंग का आह्वान किया। उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि समाचारों को विचारों के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए। उन्होंने ने इस बातपर जोर दिया कि सदस्यों को विधायिकाओंमें सार्थक तरीके से बहस व चर्चा करनी चाहिए और निर्णय लेना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि मीडिया को संसद और विधायिकाओं में व्यवधान की जगह रचनात्मक भाषणों को लोगों के सामने लाना चाहिए। उन्होंने सनसनीखेज खबरों और संसद व विधानसभाओं में व्यवधान डालने वालों पर अधिक ध्यान देने को लेकर सावधान किया। उन्होंने आगे सार्वजनिक बहसों के गिरते मानकों पर चिंता व्यक्त की।उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि राजनीतिक दल विधायिकाओं और सार्वजनिक जीवन में अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता अपनाकर खुद को विनियमित करें।
उन्होंने जनप्रतिनिधियों को सलाह दी कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों पर व्यक्तिगत हमले करने से बचें। उन्होंने दल-बदल विरोधी कानून की किसी तरह की कमियों को दूर करने के लिए इस पर फिर से विचार करने का भी आह्वान किया। उन्होंने आगे इसका उल्लेख किया कि अतीत में पत्रकारिता को एक मिशन माना जाता था, जिसमें समाचार पवित्र होते थे। उन्होंने आगे इस तथ्य को रेखांकित किया कि घटनाओं की निष्पक्ष और सच्ची कवरेज व लोगों तक उनके विश्वसनीय प्रसारण पर अच्छी पत्रकारिता आधारित होती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पत्रकारिता एक मिशन है। लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने एक स्वतंत्र, बंधन मुक्त, मज़बूत और जीवंत मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रमाणिकता और विश्वसनीयता पत्रकारिता की नींव है। समाचारों और विचारों के बीच एक लक्ष्मण रेखा का सम्मान करना आधुनिक समय की मांग है।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया