कविता

तेरी खामोशी

थोड़े मायूस होकर जब ,

हम अपनी राह चलते हैं।
तुझे साथ लेकर के ,
तुझी से दूर रहतें हैं।।
ख्यालों मे मिले जज्बात ,
सब समेटे रहतें हैं ।
अजीब होता है जाने क्यूं ,
ना गुफ्तगू कोई करतें हैं ।।
कसक है टीस है,
बेबस से कुछ यूं रहते हैं ।
खबर तुझको क्या देतें ,
इसी में हसकर जीतें हैं ।।
जलाती जाती है मुझको,
तेरी खामोशी की लपटे।
है दर्द ये एक ऐसा ,
हर गम से दूर रहतें हैं।।

वन्दना श्रीवास्तव

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525