नदी ख़ुशी से बहती चल
नदी ख़ुशी से बहती चल,
सारे सुखदुख सहती चल।
पथ में जब पत्थर रोकें ,
जमके उनसे लड़ती चल।
अपनी अमृत के जल से ,
सबके पाप निगलती चल।
रुकना तुझे क़ुबूल नहीं ,
सबसे ऐसा कहती चल।
सच की राहों पे चल के ,
सारे झूठ मसलती चल।
आशा के नव दीप जला
अन्धकार को छलती चल।
सागर से अब मिलना है ,
धीमे धीमे चलती चल।
— महेंद्र कुमार वर्मा