ओ स्त्री
कभी तो देर तक आराम कर लो
नींद को भी आगोश में भर लो
थक जाती हो तुम,
मुझे पक्का पता है,
ओ स्त्री!
खुद के लिए थोड़ा आराम कर लो।
अपने आस -पास जो तुमने
जिम्मेदारी की दीवार बना रखी है,
घुट-घुट के जीने की जो आदत बना रखी है,
एक कप चाय भी तुम
शांति से पी नहीं सकती,
ओ स्त्री!
क्या तुम थोड़ा अपने लिए
नहीं जी सकतीं ?
तुम्हारे होने न होने से
किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा,
तुम्हारे बिना भी ये परिवार
खुशहाल रहेगा।
कब तक सारी जिन्दगी
दूसरों के लिए जीती रहोगी,
सिर्फ और सिर्फ अपने लिए
तुम कब कुछ करोगी ?
थोड़ी आजादी,थोड़ा एकांत
तुम्हें भी चाहिए,
कुछ खुशी के पल जरा
अपने लिए भी निकालिये।
इतना महान बनके तुम्हें
कोई पुरस्कार नहीं मिलेगा,
ओ स्त्री!
तुम्हारे बाद तुम्हे
कोई याद भी नहीं करेगा।
— सपना परिहार