ग़ज़ल
आहों से असर शेरों से मेरे जायका जाता रहा,
तुम गए तो जिंदगी का हर मज़ा जाता रहा,
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सीख मैंने भी लिया दुनिया का थोड़ा सा चलन,
साथ तेरे दिल से जज़्बा ए वफा जाता रहा,
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मेरे गिरते ही सभी ने मुझसे आँखें फेर लीं यूँ,
छोड़ कर मुझको तड़पता काफिला जाता रहा,
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आखिर अधूरी रह गई तलाश ए हमसफर मेरी,
दो पल ठहर के पास मेरे जो मिला जाता रहा,
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मेरी लग्ज़िशों ने मुझे गुमरही से बचा लिया,
अच्छा है कि मैं रास्ते में डगमगा जाता रहा,
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क्या हुआ जो लुट गया उल्फत में कोई आपकी,
आप रहिए चैन से क्या आपका जाता रहा,
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आस्तीनों में छुपे खंजर दिखे जब अपनों के,
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।