गीतिका
देश को मिल खा रहे हैं,देश रोता है हमारा
छीन लेना सब,बड़ा ,आसान होता है हमारा
इस तरफ भी,उस तरफ भी देखिए अपने खड़े हैं
आज फिर संग्राम अपनो से ही होता है हमारा
मौन है कुछ भी नही कर पा रहे हैं बेबसी है
पास में बेटा खड़ा है, दूर पोता है हमारा
वो हमारी आँख का काजल चुरा कर ले गये
कुछ कहें या चुप रहें नुकसान होता है हमारा
बात से तीली जला के,वो जला देगें शहर को
जल लिए दुश्मन यहां पर,हाथ धोता है हमारा
वो यहां रोटी पकाने आ गये हैं स्वार्थ की सब
जानते हैं देश का हर तन्त्र सोता है हमारा
— शालिनी शर्मा