प्रतिभा
मुकेश को “वीडियो गेम सृजन प्रतियोगिता” में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था. उसके गेम को यू.ट्यूब ने खरीद लिया था, उसे 20 लाख रुपए का चेक मिला था.
मुकेश तो बहुत खुश था ही, मुकेश के माता-पिता भी बहुत खुश थे. बधाई देने के लिए दोस्तों और नाते-रिश्तेदारों के फोन भी बराबर आ रहे थे.
मुकेश की मम्मी रोमिला ऊपर से तो बहुत खुश थी, लेकिन उसका मन रो रहा था. वह मुकेश की नजरों से नजरें नहीं मिला पा रही थी. उसके सामने मुकेश के साथ अपने व्यवहार पर पश्चाताप की रील चल रही थी.
“छोटा-सा बच्चा मुकेश बड़े मनोयोग से टी.व्ही. पर वीडियो गेम खेल रहा था और मैंने उसे देखते ही उसको डांटना शुरु कर दिया.”
“हम फूल हैं हमें खिलने दो
रोको मत
अपनी प्रतिभा से मिलने दो.” डांट के प्रत्युत्तर में उस मासूम ने बड़ी मासूमियत से कहा था.
पर मैंने क्या किया, उसको दो-चार झांपड़ जड़े और “बड़ा आया प्रतिभा वाला! अपनी प्रतिभा पढ़ने में दिखा न!”
उसने तब भी कुछ न कहा और उसी तरह मनोयोग से वीडियो गेम खेलता रहा.
ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ. हारकर मैंने ही उससे कुछ कहना ही बंद कर दिया.
मुझसे तो वह कुछ शेयर नहीं करता था, पर पापा से हर बात बड़े विस्तार से करता था. बड़े ध्यान से पापा उसकी बातें सुनते, उसे सुझाव भी देते और कुछ नया कर दिखाने को प्रेरित भी करते.
उन्होंने ही मुकेश को “वीडियो गेम सृजन प्रतियोगिता” के बारे में बताया और भाग लेने को प्रोत्साहित किया था. किसी तरह फीस की राशि का प्रबंध करके उसे प्रतियोगिता में सक्रिय भाग लेने के लिए तैयार भी किया था.
प्रतियोगिता के साथ पढ़ाई को भी चुनौती मानकर उसने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन पढ़ाई में भी किया था. अपनी कक्षा में भी वह प्रथम रहा था.
“मुझसे नाराज हो क्या मम्मी! आपकी बात न मानकर खेलता रहता था.” मम्मी के गले लगते हुए मुकेश ने पूछा. मां के मनोभावों को वह भलीभांति समझ रहा था.
“नहीं बेटा, मुझे तो तुम पर नाज है! मुझे क्या पता था कि तुम देखने के बहाने इतना कुछ सीख रहे हो! पढ़ाई में भी तुमने कमाल कर दिखाया!” मां ने उसको प्रेम से गले लगाते हुए पुचकारा.
“इसकी प्रतिभा ने हम सबके नाम को रोशन किया है.” पिता भी उनकी खुशी में शामिल हो गए.