भाषा-साहित्य

विराम चिह्नों का उपयोग

किसी भी भाषा में विराम चिह्नों का बहुत महत्व होता है। ये लिखी गयी बात का अर्थ स्पष्ट करने में बहुत सहायता करते हैं। गलत विराम चिह्न के उपयोग से अर्थ का अनर्थ हो सकता है। लेकिन खेद है कि अनेक धुरंधर रचनाकार भी अपनी रचनाओं में इनका पूरा ध्यान नहीं रखते। यहाँ हम सामान्य रूप में होने वाली गलतियों और उनके निराकरण के बारे में लिख रहे हैं।

पूर्ण विराम- यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी से पता चलता है कि कोई वाक्य कहाँ से प्रारम्भ होकर कहाँ पर समाप्त हो रहा है। अनेक लेखक इसकी उपेक्षा करते हैं और कहीं पूर्ण विराम लगाये बिना लिखते चले जाते हैं। यह अनुचित है। हमें पूर्ण विराम का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

पूर्ण विराम के लिए हिन्दी में एक खड़ी लकीर या पाई (।) का प्रयोग किया जाता है। अधिकांश हिन्दी कीबोर्डों में इसके लिए व्यवस्था होती है। जहाँ पूर्ण विराम का बटन न हो, वहाँ एक बिन्दु या डॉट (.) का प्रयोग पूर्ण विराम के लिए किया जा सकता है। लेकिन इन दोनों के अलावा किसी चिह्न का प्रयोग पूर्ण विराम के लिए करना उचित नहीं है, जैसे- कैपीटल आई (I), छोटी एल (l), तीन या अधिक लगातार बिन्दु (….), लम्बी खड़ी लकीर (|), विस्मयादिबोधक चिह्न (!) आदि। इनसे सम्पादक को खीझ हो जाती है।

अर्द्ध विराम (कॉमा)– अर्द्ध विराम भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग दो वस्तुओं या वाक्यांशों को अलग-अलग दिखाने के लिए किया जाता है। जैसे- राम, श्याम और मोहन खेल रहे हैं। यहाँ राम के बाद कॉमा लगाया गया है और उसके बाद एक स्पेस देकर अगला शब्द टाइप किया गया है। यही कॉमा का सही उपयोग है। कई लोग इसमें मनमानी कर जाते हैं और राम के बाद के बजाय श्याम से पहले कॉमा लगा देते हैं या कॉमा के बाद स्पेस नहीं देते या आगे-पीछे दोनों जगह स्पेस दे डालते हैं। ऐसी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए।

रिक्त स्थान (स्पेस)– बहुत से रचनाकार स्पेस का भी घोर दुरुपयोग करते हैं। वे वाक्य में कहीं भी एक साथ दो या अधिक स्पेस दे देते हैं या कई बार दो शब्दों के बीच भी स्पेस नहीं देते। इसलिए ध्यान रखिए कि हर वाक्य में दो शब्दों के बीच स्पेस देना और हर पूर्ण विराम तथा अर्द्ध विराम के बाद स्पेस देना आवश्यक है।

कोष्ठक लगाते समय हमें प्रारम्भिक कोष्ठक चिह्न से पहले और अन्तिम कोष्ठक चिह्न के बाद स्पेस अवश्य देना चाहिए। इसके विपरीत कहीं स्पेस देना गलत होता है। उदाहरण के लिए- हमारे अंकल (मेरे ताऊ) कल आयेंगे। यह कोष्ठक और स्पेस का सही उपयोग है। इसे यदि इस तरह लिखें- ‘हमारे अंकल( मेरे ताऊ )कल आयेंगे।’, तो बहुत अजीब सा लगेगा।

संदर्भ चिह्न- अनेक रचनाकार संदर्भ चिह्नों का भी मनमाना उपयोग करते हैं या करते ही नहीं। अनेक कहानी लेखक संवादों को संदर्भ चिह्नों में रखे बिना लिखते चले जाते हैं। इससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि किसकी बात कहाँ से शुरू और कहाँ खत्म हो रही है। इसलिए हमें सभी संवाद अलग-अलग करने के लिए संदर्भ चिह्नों का उपयोग करना चाहिए। एकल (‘ ’) या युगल (” “) संदर्भ चिह्नों में कोई अन्तर नहीं है, लेकिन यदि संवाद के भीतर संवाद हो, तो बाहरी संवाद के लिए युगल और भीतरी संवाद के लिए एकल संदर्भ चिह्न लगाने चाहिए। इन पर भी स्पेस के नियम कोष्ठकों की तरह लागू होते हैं अर्थात् प्रारम्भिक संदर्भ चिह्न से पहले और अन्तिम संदर्भ चिह्न के बाद स्पेस अवश्य देना चाहिए।

संदर्भ चिह्नों का प्रयोग उपनाम लिखने में भी किया जाता है, जैसे- तूफान सिंह ”उग्र“। यह सही तरीके से लिखा गया है। इसे यदि हम तूफान सिंह” उग्र“ या तूफान सिंह ” उग्र “ या तूफान सिंह”उग्र“ लिखें तो वह मूर्खतापूर्ण लगेगा।

यहाँ कुछ प्रमुख विराम चिह्नों के उपयोग की ही संक्षिप्त चर्चा की गयी है। इनका पालन करने से आपकी रचना में निखार आता है। इसलिए इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]