दिल की बातें
दिल की बातें साझा करना
कठिन भी तो है,आसान भी,
मन की पीड़ा बाँटना मुश्किल है,
क्योंकि पीड़ा के लिए दोषी मैं ही हूँ।
तो दोष किसे दूँ, किससे बताऊँ?
भावनाओं के रिश्ते की पवित्रता पर
आखिर दाग क्यों और कैसे लगाऊँ?
दिल ने माना महसूस किया
पवित्रता को हृदय से आत्मसात किया,
परंतु साकार रूप में ऐसा हो
ये मुमकिन नहीं लगता,
अन्जाने में जुड़ा है हमारा रिश्ता।
दिल की बात तो बस इतनी है
कि भावनाओं, संवेदनाओं से ऊपर उठकर
साकार हो जाये हमारा रिश्ता,
पवित्र रिश्तों की नई इबारत लिखे
हमारे बीच का अनदेखा रिश्ता
दिल की बात सच हो जाये
बस, चाहता है हमारा रिश्ता।