कविता

वर्षा रानी आ ही जाओ

कब से इंतजार में हम हैं वर्षा रानी
कि तुम आकर सुनाओगी अपनी कहानी,
पर मन मलीन होकर रह गया है
तुम्हारा तो दर्शन ही दुर्लभ हो गया है।
आखिर! तुम्हारी बेरुखी का कारण क्या है?
तुम्हें मनाने का निवारण क्या है?
धरती प्यास से व्याकुल है
जगह जगह पड़ रही दरारों से आकुल है,
किसान हैरान परेशान हैं
खेती सूखती देख डर से हलकान है
दिन में भी तारे नज़र आते हैं।
सूखे का खौफ इस कदर छाया है
कि मौत को गले लगाने की नौबत न आ जाये
इस आशंका से दिन रात परेशान हैं।
पशु पक्षियों का हाल भी अब बेहाल है
जल का स्तर नीचे जा रहा है,
पीने के पानी का भी संकट बढ़ रहा है,
त्राहिमाम त्राहिमाम का शोर बढ़ रहा है।
तुम्हारी बेरुखी के जोर से
मानव की पीड़ा का न ओर छोर है,
आखिर तुम्हें आने के लिए
मनाने का कौन सा जोड़ तोड़ है।
वर्षा रानी अब मान भी जाओ
ज्यादा नखरे तो अब न दिखाओ,
हर आँख टकटकी लगाए
तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है,
बड़ी बेसब्री से तुम्हारी राह देख रही है।
अब तो मान भी जाओ
अपनी अकड़ अब छोड़ भी दो
अपनी मुस्कान बिखेरो, जल बरसाओ
आकर अपना मोहक रूप दिखाओ।
शीतल फुहार से भिगोकर
खुशियों का दरबार लगाओ,
वर्षा रानी अब मान भी जाओ
इतना गुस्सा तो न ही दिखाओ
अब तो आकर बरस जाओ
वर्षा रानी अब और देर न लगाओ
वर्षा रानी अब आ ही जाओ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921