संजीव भैया
सुबह की चाय चौकड़ी में एक खास व्यक्ति का इंतजार करते देख मुझे बड़ी अजीब सा लगता ,पर मैं कभी व्यक्त नहीं कर पाया। सच में वह क्या सम्मान के लायक है ?
संजीव भैया के संबोधन से पहचाने ,जाने वाले वो एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं , घर से भी काफी संपन्न हैं। सबसे बड़ी बात है व्यवहार और कर्म से अति निपुण , मिलनसार , मृदुभाषी और घमंड से कोसों दूर हैं तो हर कोई कैसे सम्मान नहीं देगा ।
कल की घटना ने मेरे मन मस्तिष्क को झकझोर दिया। आज के समय में लोग अपने बीबी -बच्चे में इतने व्यस्त रहते हैं की अपने माता- पिता का ख्याल रखना उन्हें अतिरिक्त अार्थिक मुआवजे देना सा लगता है।
हाथ में गत्ते की ट्रे पर सभी दोस्तों के लिए चाय लिए आते ही संजीव भैया ने कहा आज मेरे पास समय का अभाव है । आज मुझे पापा के साथ होटल में खाना है। मैने पुछा क्यों संजीव भैया कोई खास दिन है क्या ?
दिलीप जी ने मजाक के लहजे में कहा , भाभी श्री के साथ जायें ।
नहीं भाई ! संजीव भैया ने जबाब दिया , आज मुझे अपनी बचपन याद आ रहा है। जब पापा मेरे लिए जलेबी और सिंघाड़ा लेकर आते थे और हमें बगल में बैठा कर अपने हाथों से खिलाते थे ,खाता मैं था खुश पापा होते थे। जीवन के अनुपम पल की वो यादें आज भी
मेरे जेहन में बसी है , उन्ही यादों को ताजा करना है अपने पापा के साथ। अपने पापा के साथ किसी होटल में बैठ कर अपनी अंतरात्मा को ठंडक देना चाहता हूँ, इसमें किसी और की दखलअंदाजी अच्छी नहीं। मैं सिर्फ अपनी यादों में जीना चाहता हूँ। कहते-कहते संजीव भैया ने अपनी मोटर साईकिल स्टार्ट किया और चल दिये। हम सभी मित्र अपनी यादों में इतने खो गये थे की उनके जाने का एहसास नहीं हुआ।
मेरी आंखें नम थी । काश! हर कोई संजीव भैया जैसा सुपुत्र बन पाते ।
— शिवनन्दन सिंह