कविता

व्यक्तित्व

व्यक्तित्व ही व्यक्ति की अस्मिता ,
जिनका कोई व्यक्तित्व  नहीं ,
वह भी ! क्या कोई व्यक्ति ?,
बिन व्यक्तित्व के व्यक्ति धरती का बोझ ,
व्यक्ति ही व्यक्तित्व खोजें ,
ना पहचान सकें अपना रूप ,
कहत लोगों से फिरत ,
ना देखी तुमने मेरी सीरत ,
विन व्यक्तित्व के व्यक्ति का ना करें एतबार ,
कर लिया तो पहुंच जाओगे हरिद्वार ,
जनचेतना करे पुकार ,
सजग रहो तुम इनसे ,
चेतना के है सुविचार ,
बिन व्यक्तित्व के हे मानव! तुम हो अधूरे ,
उठो! जागो! पहचानो अपने को ,
खो दिया है तुमने पुरुषार्थ ,
दिखला दो ! तुम आत्म बल ,
परिवर्तन करें ललकार ,
मचा है चारों ओर हाहाकार ।
— चेतना प्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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