कविता

अब भारत की बात हो

बहुत हो चुका इन्डिया इन्डिया, अब भारत की बात हो,
झेल चुके अपमान बहुत, अब स्वाभिमान की बात हो।
जातिवाद में उलझाकर सबने, सत्ता का खेल बहुत खेला,
संस्कारों का करें समर्थन, अब मानवता की बात हो।
हिन्दू मुस्लिम जुदा जुदा हैं, सबके लक्ष्य अलग अलग,
धर्म मज़हब को बिसराकर, अब राष्ट्रवाद की बात हो।
संस्कृत ऋषि मुनियों की भाषा, देववाणी कहलाती है,
देवनागरी में लिखी गई जो, अब हिन्दी की बात हो।
भारत पहले विश्व गुरु था, अब फिर गगन तक छायेगा,
क्षेत्रवाद की बात पुरानी, अब अखंड भारत की बात हो।
अ कीर्ति वर्द्धन