कविता

अब खुद में ही रम गयी

अब खुद में ही रम गयी
 बता तो दूं सारी बातें
जता तो दूं सारी जज्बाते
यशोधरा उर्मिला की भांति
जागी हूं कितनी ही रातें
ध्येय था सिद्धार्थ लक्ष्मण का
मेरा भी भाव समर्पण का
उनका तो  लक्ष्य हुआ पूरा
पर आया ना पल अपने मिलन का
किसी और के होकर आए तुम
मैं तुम में हो गई थी गुम
अनुराग था मेरा मीरा सा
इसलिए खुद को लिया है चुन
अब मैं खुद में ही रम  गयी
कभी मचली कभी थम गयी
अब भाते मुझको यह दर्पण
रही सही सारी वहम गयी
 मैं अब खुद में ही रम  गयी
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com