कविता

मानव से गुजारिश

क्या किए है रे इंसान  तूने तेरे ही ईश्वर के हाल
जिस ने जो चाहा वो बोला और किया बेहाल
बदलते हालातों ने बदल दिया हैं इंसान
लेकिन क्यों बार बार लोग बदल रहें हैं भगवान
लाख बुरा  ईमान हो चाहे नहीं करे धर्म और ध्यान
लेकिन क्यों कहें हैं बुरा उसे जिसे माने है भगवान
नीति रीती सब छोड़ चुके हैं
जूठ से  नाता जोड़ चुके हैं
आज देखो सब इंसान
दया माया सब  छोड़ चुके हैं
बात पुरानी हैं नहीं जब रब से नाता जोड़े थे
आज तो माया वहीं रह गई हाथ में दया दिल से छू हो गई  हैं
अब भी नहीं माना उसे तो तुम् भी होंगे बेहाल
फिर पछताते रह जाओगे रह जायेगा मलाल
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।