लघुकथा

जहाँ सम्मान वहाँ स्नेह

विवेक रोज़ की तरह अकुलाते बोला, विद्या कितनी बार बोला है तुम्हें मेरे ऑफ़िस जाने के वक्त दूसरे कामों में मत उलझी रहो, न मेरा रुमाल मिल रहा है न वाॅलेट। एक ही बात रोज़-रोज़ कहनी पड़ेगी क्या तुम्हें। विद्या ने गीला तौलिया हटाया जिसके नीचे विवेक की घड़ी, रुमाल, वाॅलेट और पेन सारी चीज़ें सहज कर रखी हुई पड़ी थी। साथ में इस्त्री किए हुए कपड़े ऑफ़िस बैग और जूते सब रैडी था। विवेक खिसियाना होते तैयार होने लगा। डायनिंग टेबल पर आते ही फिर चिल्लाया दस बज गए विद्या नास्ता लाओ, हद है हर रोज़ चिल्लाने के बाद ही नास्ता मिलेगा क्या? तुम औरतों को कुछ काम नहीं होता फिर भी एक पति के ऑफ़िस जाने का समय नहीं संभाल सकती। विद्या काॅफ़ी का मग लेकर किचन से बाहर आई और कैसरोल खोला, गर्मा गर्म पोहे तैयार थे बाजु में टिफ़ीन भी, विवेक आँखें चुराता चुपचाप खाने लगा। ऐसा नहीं था की विवेक विद्या से प्यार नहीं करता था, बेइन्तहाँ प्यार करता था बस जताना नहीं आता था।
शाम को ऑफ़िस से आते वक्त विवेक विद्या की पसंद का मोगरे का गजरा और कल्लू कंदोई के गर्म समोसे ले आया और बोला ये लो खा लो। विद्या ज़ोर से चिल्लाई, नहीं खाने मुझे समोसे फेंक दो गटर में जब देखो कुछ न कुछ उठा लाते हो बगैर मुझे पूछे की मुझे क्या चाहिए या मुझे क्या पसंद है। विवेक को विद्या का बर्ताव अजीब लगा तो बोला अरे तुम्हें मोगरे के फूल और कल्लू कंदोई के समोसे तो बेहद पसंद है इसलिए तो लाया हूँ, आज अचानक तुम्हें क्या हुआ? विवेक को बहुत बुरा लगा तो विद्या विवेक के पहलू में बैठकर विवेक का हाथ अपने हाथों में लेकर बोली, मैं जानती हूँ आप मुझे बेपनाह प्यार करते है, लेकिन सुनिए मुझे गजरा या समोसा नहीं चाहिए बस दो बोल सम्मान के चाहिए, इज्जत चाहिए। मैं पत्नी हूँ आपकी कोई नौकरानी या बाई नहीं जो बिना मेरी गलती के हुकूम बजाते चिल्लाते हो। आपका हर काम बड़े प्यार से करती हूँ हर चीज़ सहज कर, संभाल कर रखती हूँ  फिर भी ये जो आप रोज़ सुबह बेवजह मेरे ऊपर नाराज़ होते चिल्लाते है उससे मुझे कितना बुरा लगता है कभी सोचा है आपने? और ये जो इतने प्यार से आप गजरा लाए हो वो अपने हाथों से मेरे बालों में लगाते और समोसे का एक निवाला अपने हाथों से खिलाते तो मुझे ज़्यादा अच्छा लगता। बेशक आपका स्नेह पाना मुझे अच्छा लगता है पर मुझे मेरा आत्मसम्मान ज़्यादा प्यारा है। आप के मुँह से दो बोल तारीफ़ के मुझमें उर्जा भर देंगे। सोचिए आपका बाॅस आपको लाख रुपये सेलरी तो देता है पर बात-बात पर बिना किसी गलती के आप पर चिल्लाए या अपमान करें तो आपको कैसा लगेगा? मन करेगा ना कि भाड़ में गई ऐसी नौकरी नहीं चाहिए मुझे लाख रुपये की सेलरी जहाँ इज्जत और सम्मान न हो वहाँ रहना ही नहीं चाहिए। वैसे ही मुझे भी गजरा समोसा जैसी किसी चीज़ की जरूरत नहीं बस दो बोल सम्मान की भूखी हूँ वो मुझे दिया कीजिए।
विवेक ने अपनी गलती मानते विद्या को सौरी बोलते गले लगा लिया। और विवेक को माफ़ करते विद्या सबकुछ भूलकर विवेक की आगोश में समा गई। हर स्त्री स्नेह पाने से ज़्यादा सम्मान पाने की इच्छुक होती है क्योंकि सम्मान ही स्नेह का प्रतीक है। जहाँ सम्मान की भावना होती है वहाँ स्नेह खुद-ब-खुद पनपता है। दूसरे दिन विद्या ने देखा गीला तौलिया बालकनी में कपड़े सूखाने वाले स्टैंड पर लटकते मुस्कुरा रहा था, विद्या भी प्यार से हंस दी। विवेक कैसरोल खोलकर उपमा परोस रहा था।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर