लघुकथा

संकल्प!

चारों तरफ प्लास्टिक की छोटी छोटी बोतलें पड़ी हैं। थर्माकोल की प्लेट और ग्लासेस भी। बीच बीच में झूठा खाना बिखरा है। भिन भिन करते मच्छर। भौंकते श्वान। पत्तल से बोतले उठाते, कोल्ड ड्रिंक का बचा कूचा घूंट बड़े मजे से पीते, कचरे से पेट की आग बुझाते बच्चें। मटमैले कपड़े। बदहाल जिंदगी। जानवरों से बदतर। राज कब से देख रहा था। सोच रहा था, अमर चाचा जैसे किसी पालनहार की नजर पड जाए तो इन अभागों की भी संवर जाएगी जिंदगी। और किसी गलत व्यक्ति की बातों में आकर गलत संगत में आ गए तो बर्बाद हो जाती जिंदगी। राज को अमर चाचा ने गोद लिया है। अगर अमर चाचा उसे अपना न मानते, वह भी आज चोरी छिपे नशे की दवाइयां बेच रहा होता या शराब की बोतल गंतव्य पर पहुंचाता होता। पांच-दस रुपयों के लिए झुग्गी-झोपड़ियों में बच्चे छोटा बड़ा कुछ भी काम कर लेते हैं। अमर चाचा उससे काम करवाते है, पर दुकान में। व्यापार के गुरुर भी सिखाते हैं। पढ़ाई के लिए ट्यूशन भी लगाया हैं। अच्छा इंसान, बड़ा आदमी बन अमर चाचा को खूब खुशियां देगा वह। इन अनाथ बेघर बच्चों के लिए भी घर जैसा आश्रम बनवायेगा। खूब पढ़ायेगा। अमर चाचा पुकार रहे थे, “चलो, देर हो रही है।” मन ही मन ठान लिया था उसने, शाम को बच्चों से मिलने जरूर आऊंगा। उनकी भी जिंदगी संवर जाए, कोशिश करूंगा। दृढ़ संकल्प करते हुए राज अमर चाचा के साथ चल दिया। प्रभु परमात्मा से अर्चना करते हुए, “हे प्रभु, अमर चाचा जैसे देवदूत धरती पर भेजते रहिए।”

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८