कविता

नारी नर की नारायणी!

गर्भ में प्रेम से फल, फूल रहा था कन्या-भ्रूण सहर्ष,
मिटा दो, गिरा दो, करा दो गर्भपात, माता मन में संघर्ष,
पढ़ाओ, लिखाओ, सगुण बनाओ, खूब देते भाषण,
पल-पल लुटती इज्ज़त, दुराचारी करते शोषण।।
नहीं चाहिए कन्या हमें, कुलदीपक की है आस,
घर का दीपक, कुल का गौरव, परिवार का प्रभास,
वंश कुल का, धन दौलत का, नाम दीपित करेगा लाडला,
बेटी तो है धन पराया, कौन बनेगा रखवाला?
बेटियाँ आँगन की तुलसी, मन मन्दिर की पावन आभा,
संजोती दो घर की लाज, दो कुल की बढ़ाती शोभा,
भारतीय संस्कृति में नारी को देवी स्वरूप पूजनीया,
क्यों प्रताड़ित, अपमानित, लुटती दिनदहाड़े बेटियां?
संस्कार बीज बोने होंगे, सदाचार, सद्भावना मन में,
लड़का-लड़की भेद न करे, मातापिता लालन-पालन में,
कन्या भ्रूणहत्या है महापाप, अपराध बड़ा अक्षम्य है,
मां, बेटी, बहन, प्रिया, अर्धांगिनी, नारी नर की नारायणी है।।
नारी को ही बनना सबला, सक्षम, शक्तिरूप साधना,
जन्म लेगी थाट से बेटी, रोशन होगा घर-अंगना,
परम प्रभु की सर्वोत्तम कृति, सुशीला, सुहासिनी,
शुभ, मंगल हॄदय-भाव अनुभूति, बेटी शीतल चाँदनी।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८