कविता

कविता

मौन हूँ, पर गूंगा नहीं हूँ,
शीतल हूँ पर जल नहीं हूँ।
ठंडा बर्फ सा- तासीर गर्म,
अंजान हूँ पर अंधा नहीं हूँ।
खामोशी को कमजोरी माना,
विनम्रता को कमजोरी जाना।
कोशिशें अपनी रिश्ते बचाना,
मेरे त्याग को कमजोरी ठाना।
खोल दूँ पल में सभी की साजिशें,
उधेड़ दूँ दिल में छिपी ख्वाहिशें।
जानता हूँ सब कुछ जो चल रहा,
पाप की किसके दिलों में रिहाईशें।
अ कीर्ति वर्द्धन