कविता

जीत

जीत लेगें दुश्मन को एक दिन
जिस दिन होगी समर से प्यार
रोक ना पायेगें बैरी मेरी मंजिल
जिस दिन होगी हाथ में तलवार

सामने दिख जाये कोई पहाड़
या पथ पे हो  शेर की  दहाड़
पीछे कदम ना कभी मुड़ेगा
आगे बढ़ कर करेगें हम वार

हिम्मत हो जब अपना साथी
जीत लेगें हम कोई भी   वार
जो दुश्मन सामने आयेगा
टुट पड़ेगी   अपनी तलवार

मुद्रा होगी रौद्र रूप अपना
जीता है रण हमने सौ बार
झ्स रणभुमि में भी होगी
विजय माल की अपनी हार

हर युग का हम हैं सिकन्दर
हमारी चली थी हमारी तार
सारे बैरी बन गये बन्दर
हम ने जीत लिया था वार

चलो एक बार ललकारें
और दुश्मन को मार गिराना है
कोई शत्रु टिक ना       पायें
ऐसी चाल फिर चलाना है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088