गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कच्ची मिट्टी के हमने मकान देखे हैं
और बेघर भी हमनें तमाम देखे हैं।

इन आंखों की नमी में कई समंदर हैं
डुबा दें कश्ती मैंने वो तुफान देखे हैं।

यहीं पे था आशियां महसूस होता है
ढेर पर रेत की मैंने वो निशान देखे हैं।

रज़ा जिसमें खुदा की शामिल थी
वो फैसले भी हमने नाकाम देखे हैं।

जो बदल जाते हैं मौसम की तरह
हमनें वक्त के वो भी गुलाम देखे हैं।

जिसे भी देखिए जानिब खास ही है
बजार रिश्ते के मैंने सरेआम देखे हैं

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर