कविता

मैं दीप जला कर रखूँगी

कर दूँगी रंग-रोशन सब कोने
आँगन रंगोली से सजाऊँगी
द्वार सजाऊँ वन्दनवार से
फूलों से घर महकाऊँगी।
पल-पल प्रतीक्षित रहेगा मेरा
उस राह को हर पल निहारूँगी
“मैं दीप जला कर रखूँगी”
मैं मन ही मन तुम्हें पुकारूँगी।
प्रेम और विश्वास का दीपक
समर्पण की उसमें बाती होगी
निष्ठा के तेल से दीप जलेगा
हम दोनों की ऐसी दीवाली होगी।
“मैं दीप जला कर रखूँगी”
तुम प्रतीक्षा मुझे न करवाना
मेरे आस का दीपक जला रहेगा
इस दीवाली तुम आ ही जाना।

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।