बड़े हो गए तो क्या
अभी भी मन का बच्चा
केक, आइसक्रीम, चॉकलेट
झूला,बारिश, खेल खिलौने
देख मचलता तो है।।
बड़े हो गए तो क्या
मन का बच्चा अभी भी
जिन्दा है
शरारतें करने को , पेड़ से कच्चे आम,
अमरूद तोड़ने को, बरसात में भीगने को,
पानी में छप छप करने को
कागज़ की नाव तैराने को
उछलता है मन।।
बड़े हो गए तो क्या रंगीन टॉफियां,
कच्ची इमली, आमपापड़, चुस्की,
बुढ़िया का बाल, कैंडी आदि को
ललचाता है मन ।।
बड़े हो गए तो क्या
कहीं न कहीं मन का बालपन ,
कोमलपन, अल्हड़पन
अभी भी छुप कर रहता है
बालों की सफेदी में
चेहरे की झुर्रियों में
घुटने के दर्द में
कपकपाते हाथों में
उम्र बढ़ गयी तो क्या हुआ
मन का बच्चा अभी भी
जिन्दा है बढ़ती उम्र की परत के नीचे।।
— मीनाक्षी सुकुमारन