कविता

कविता

बड़े हो गए तो क्या
अभी भी मन का बच्चा
केक, आइसक्रीम, चॉकलेट
झूला,बारिश, खेल खिलौने
देख मचलता तो है।।
बड़े हो गए तो क्या
मन का बच्चा अभी भी
जिन्दा है
शरारतें करने को , पेड़ से कच्चे आम,
अमरूद तोड़ने को, बरसात में भीगने को,
पानी में छप छप करने को
कागज़ की नाव तैराने को
उछलता है मन।।
बड़े हो गए तो क्या रंगीन टॉफियां,
कच्ची इमली, आमपापड़, चुस्की,
बुढ़िया का बाल, कैंडी आदि को
ललचाता है मन ।।
बड़े हो गए तो क्या
कहीं न कहीं मन का  बालपन ,
कोमलपन, अल्हड़पन
अभी भी छुप कर रहता है
बालों की सफेदी में
चेहरे की झुर्रियों में
घुटने के दर्द में
कपकपाते हाथों में
उम्र बढ़ गयी तो क्या हुआ
मन का बच्चा अभी भी
जिन्दा है बढ़ती उम्र की परत के नीचे।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |