मुक्तक/दोहा

हरि बोल

सार जगत का जिस पल मानव समझ सकेगा,
माया- ममता- मोह जाल से, निकल सकेगा।
भौतिक सुविधाओं को सार, जगत को मान रहे,
अध्यात्म का सार समझ, स्वयं को जान सकेगा।
— अ कीर्ति वर्द्धन