कविता

बैठ प्रेम की पाँत

चार दिन की है चाँदनी
फिर आयेगी अंधेरी रात
नफरत को दूर भेज दीजीये
करना है सबसे प्रेम की बात

चार दिन की है चाँदनी
ना पहन गुरूर की   ताज
अर्श से फर्श पर आ जाओगे
बहकी बहकी करोगे जब बात

चार दिन की है चाँदनी
ना कर अपमान की हाथ
समाज में मान मिट जायेगा
जब लगेगी वक्त की    घात

चार दिन की है चाँदनी
सद्भाभावना की हो जज्वात
गुलशन     में सब फूले फले
महक जाये गुण की बरसात

चार दिन की है चाँदनी
सपनों की मधुर हो हर रात
भाई भाई में प्रेम उपजे   अब
बैठना है प्रेम की हमें  पाँत

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088