गीत/नवगीत

थोड़ी जरूरी दूरी है करीब आने के लिए

वो  कहते हैं हमसे दे जाओ कोई निशानी
बिन तेरे हमको है अब कुछ दिन बितानी
आई थी जब तो  बीती थी सोलह  सावन
संग  तेरे  ही  तो   बीती  है  सारी जवानी|
अब भी कहते हो दे जाओ कोई निशानी?
ये  दरों  दीवारें  और  ये  आंगन ये चौखट
उन  पर स्पर्शों की  सभी तरफ है सिलवट
नरम   हाथों  से   अपने  उसे  तुम  सेंकना
सुनो कान  लगा कर आएगी वो ही आहट
चाहो तो कर दो शुरू अभी से आजमानी
अब भी  कहोगे  दे जाओ  कोई निशानी?
हमें  भी तुम  बिन है  कुछ  दिन गुजारनी
पर   पास    मेरे  हैं    कई   यादें   रूहानी
सर्दी  की  गुनगुनी धूप वो  सावन की  बूंदे
रखा है समेटे  उन  सारे  लम्हों की कहानी
तुम    ही  तो   हो मेरी   सारी   जिंदगानी
हमारे  पास  तो  है  सहेजी धरोहर पुरानी
पलटती     हूँ    उन   पुराने   पन्नो      को
तो क्यों मांगू भला हमें दे दो कोई निशानी
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com