बरसात का आनन्द अब, फिर से लिया जायेगा,
बचपन में भीगा करते थे, पचपन में देखा जायेगा।
लगती नहीं वर्षा की झड़ी, कैसे बतायें बच्चों को,
थोड़ी सी बारिश गर हुई, ज़्यादा समझा जायेगा।
हैं कहाँ सर्दी की ठिठुरन, अकड़ जाती थी अंगुलियाँ,
लू के थपेड़े भी कहाँ बचे, गर्मी में देखा जायेगा।
सुविधाएँ बहुत बढ़ी, आय के साधन भी बढ़े,
आज ख़र्च करने की आदत, कल देखा जायेगा।
कर्ज लेकर घी खाना, आज में जीवन बिताना,
कौन जाने कल क्या हो, उत्सव मनाया जायेगा।
— डॉ अ कीर्ति वर्द्धन