कविता

चांद, तुम योगी हो

चांद, चाहे तुम्हें कोई
पांडुरोग से कहे पीड़ित
कोरोना के तनाव से ताड़ित
दाग के दंश से दंशित
तुम नहीं समझते अपमानित
किंचित भी नहीं होते क्रोधित
चंदनिया के मृदुल मधु-रस से
समरस रहकर करते हो आप्लावित
गीता पढ़ी या नहीं पढ़ी
रहते हो हर पल निर्लिप्त.
सूर्य से उजियारा लेकर करते नहीं संचित
सतत करते वितरित
अग जग को करते प्रकाशित
फलों-फूलों को करते मधु-रस से सिंचित
समस्त सृष्टि के लिए उपयोगी हो
चांद, तुम योगी हो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244