कविता

अपनी सेना पड़ोसी के नाम

यह विडंबना है या मतिभ्रम
सत्ता पाने की बेशर्मी भरी बेसब्री ने
पहले पिता की विरासत
फिर उनके उसूलों, सिद्धांतों की बलि दे दी
जो राम को काल्पनिक कहते रहे
जिनसे पिता जी उम्र भर लड़ते रहे,
सत्ता की खातिर  तुमने
उन्हीं की चौखट पर पगड़ी रख दी।
हिंदुत्व का दिखावटी आइना लेकर
राम की चौखट पर जाकर भी
गिरगिट सरीखे रंग बदल
राम से भी गद्दारी कर दी।
संतों की हत्या पर लीपापोती
योगी पर बेशर्म शब्दबाण चलाकर
हनुमान चालीसा का विरोध
और भक्तों पर अत्याचार करके
सच का मुंह बंद करने की तानाशाही ने
आज क्या से क्या कर दिया
लोगों की आह का ये कैसा असर दिखा
न खुदा ही मिला न बिसाले सनम
कहावत चरितार्थ हो गया।
अब रोकर घड़ियाली आंसू नाहक बहा रहे हो
हमारा अस्त्र और अस्तित्व चोरी हो गया का
बेसुरा राग गा खुद तमाशा बन रहे हो।
राम हमारे साथ है का भ्रम पाले हुए हो
कोई तो इन्हें समझाओ
राम अस्त्रहीन कब रहे ,जरा इनको बताओ
जो राम और संतों का अपमान करते रहे
राम उनके साथ भला कब रहे।
सत्ता गई तो फिर राम याद आने लगे
दोहरा मापदंड और राम के प्यारों को
अपमानित करने वाले कल के तानाशाह को
आज फिर राम याद आने लगे।
काल्पनिक राम कहने वालों की
दुर्दशा देखकर भी आंखें बंद कर ली
सत्ता की खातिर अपनों से आंखें फेर ली
जब सब कुछ बिखर गया
न तुम्हारी सत्ता रही, न ही तुम्हारे पीछे सेना
विरासत भी अब न साथ रह गया
तब फिर से रामजी याद आने लगे।
लाख उछल कूद कर लो अब सत्ता के पुजारी
राम नाम भी अब हाथ से फिसल गया,
अब बचा क्या है, अब क्या करोगे
माथा पीटोगे या रोओगे
सिर्फ छुनछुना बचा है, बाकी सब छिटक गया।
अब बैठे बैठे छुनछना बजाओ और मस्ती से गाओ
नहीं रहा अब कोई काम,रघुपति राघव राजा राम,
अपनी सेना हो गई पड़ोसी के नाम।

*सुधीर श्रीवास्तव

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