कविता

डर

हमारे देश के नेताओं, राजनीतिक दलों की
अपनी कोई सटीक विचार धारा नहीं है,
उन्हें अपने ही बनाए नियमों पर भरोसा नहीं
राजनैतिक हितों, सत्ता के लिए वे
गिरगिट की तरह हर रोज रंग बदलते हैं,
विपरीत विचार धारा के साथ लाभ हानि देखकर
कदमताल करते हैं।
विरोधी केवल विरोध की राजनीति करते हैं
नियम, कानून, सिद्धांत से कोसों दूर रहते हैं।
स्वायत्त संस्थाओं को कोसते हैं
जब फैसला उनके विरोध में होता है
फैसला पक्ष में हो तो
उसी के गुणगान करते नहीं अघाते हैं।
सत्ता के लिए सिद्धांत भूल कुर्तकों की आड़ में
कुर्सी हथियाते हैं।
कल तक जिस पर तरह तरह के आरोप लगाते थे
अपराधी, भ्रष्ट, कातिल जैसे बड़े तमगों से नवाजते थे
अपनी पार्टी में आते ही उसे
ईमानदार और पाक साफ संत बताते हैं,
अब तो अपराधियों, माफियाओं का
सुरक्षित ठिकाना ही राजनीति बन गई है,
नेता का ठप्पा लगते ही
सारे नियम कानून बौने हो रहे हैं।
नेताओं का सतत विकास जारी है
आमजन जिये या मरे
देश रहे या गर्त में जाये
ये न इनकी जिम्मेदारी है।
अब तो अपना भी कल अंधकारमय लगता है
राजनीति की आड़ में जाने क्या क्या होगा
यह सोचकर डर लगता है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921