कविता

भ्रूण की अभिलाषा

माँ मुझे भी इस धरती पर
अपनी कोख से आने    दो
इस पावन धरती पर आकर
माँ बहन पत्नी  बन जाने दो

मैं भी तेरी ही जैसी
किसी के घर की लक्ष्मी बनूँगी
इस धरती पर अवतरण लेकर
सूरज चन्दा सितारे भी देखूँगी

नानी माँ ने जैसे तुम्हें जन्म दिया
इस दुनियाँ को दिखलाई है वह
मुझे भी नानी के नक्सेकदम पे
चल इस जहाँन को दिखलाना माँ

मैं भी किसी की बहन पत्नी बन
झ्स पावन दुनियॉ में जीना चाहती
अपनी कर्तव्य हेतु माँ मैं भी कल
घर गृहस्थी चला बसाना चाहती हूँ

मत कर कोख में मेरी हत्या मम्मी
क्या खता हुई हमसे ये तो बताना
किस गलती की सजा दे रही हो हमें
जन्म से पहले की गलती तो बताना

नारी प्रकृति की है अद्भुत श्रृंगार
नारी बिन सूना है घर         द्वार
नारी की जिस घर होती है  पूजा
लक्ष्मी बसती है सदैव   सुन  जा

डा० अकंल हम पे तुम रहम कर
नारी भ्रूण की तुम हत्या ना   कर
मुझको भी हक है जीवन जीने का
मुझे भी हक है धरा पे जन्म लेने का

नारी बिना घऱ गृहस्थी है     अधूरी
मत कर जीवन से नारी की  दूरी
जीवन की ताना बाना है ये नार
नारी बिना सूना है जग    संसार

नारी बिना नर की कल्पना है बेकार
मत कर जग नारी भ्रूण पे अत्याचार
नारी है तो नर है इस जग      में
फिर क्यूं सोंच ग़न्दा है तेरे      मन  में

नारी ममता की है एक।   मूरत
दया की जीतीजागती है  सूरत
नारी क़ी कीमत को   पहचान
नारी को धरती पर लाने की   ठान

नारी की कमी जग को रूलायेगी
नारी की आभाव जग को तड़पायेगी
ना मिलेगी दूध पिलाने वाली यशोदा
ना मिलेगी राखी बॉधने वाली सुभद्रा

नारी चुन्ना मुन्ना की है     जन्मदाता
नारी है तुम्हारी भी जननी    माता
नारी भ्रूण हत्या करो सब बहिष्कार
नारी को सम्मान दो अय   संसार

त्याग की नारी है एक निशनी
अर्द्धनारीश्वर की है एक कहानी
अर्द्धागंनो वो कहलाती।     है
मातेश्वरी ही जग को  बसाती है

नारी विना नर भी है      अधूरा
नारी संग नर भी है वो।   पूरा
जो जग हम देख पाते     हैं
नारी का ही वो सर्मपण सारा

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088