लघुकथा : सोच
वे बोले, “रामदेव के प्रोडक्ट खराब हैं।”
मैं : हम नहीं खरीदते।
वे : दंत कांति तो बढ़िया है।
मैं : हम वो भी नहीं लेते।
वे : इतना बड़ा एंपायर खड़ा कर लिया है इसने और प्रोडक्ट भी बड़े महंगे हैं।
मैं : कंपीटीशन बहुत है, अगर प्रोडक्ट लोगों पसंद नहीं आएंगे, तो वे अपने आप फेल हो जायेंगे। जब हम खरीदते नहीं, तो हम फिक्र क्यों करें।
वे : सरकार इनकी मदद कर रही है। हिंदू मुस्लिम में भेद करती है और तुम जैसे लोग …. “देश की न सोचना”।
रामदेव के प्रोडक्ट खरीदूं या नहीं,,, मैं कोमा में हूं।
अंजु गुप्ता “अक्षरा”