कविता

सब था… पत्थर

बात पत्थरों की चली।
पत्थरों के शहर में हर इंसान … पत्थर।
हंसता -बोलता, रोता -खेलता हर इंसान… पत्थर।
और दुनिया बनाने वाला इंसान का भगवान …पत्थर।

बात पत्थरों की चली…सब था पत्थर।
इंसानियत को दरकिनार करते कुछ किरदार… पत्थर।
अपनों की ठोकरों में आयें कुछ मतलबी वफादार… पत्थर।
बन बैठे सिपाहसालार धर्म और समाज के कुछ अमूल्य… पत्थर।

बात पत्थरों की चली।
पत्थरों के शहर में हर इंसान … पत्थर।
पत्थरों के हर शहर का हर मकान… पत्थर।
वक्त की चक्की में पिसता हर आम-खास…पत्थर।
दिल कहाँ है… उसकी जगह गढ़ा है कबरिस्तान -सा…पत्थर।

बात पत्थरों की चली।
पत्थरों के शहर में हर इंसान था… पत्थर।
हंसता -बोलता, रोता -खेलता हर इंसान… पत्थर।
और उसी दुनिया को बनाने वाले इंसान का भगवान …पत्थर।

बात पत्थरों की चली…सब था पत्थर।
इंसानियत को दरकिनार करते वो किरदार… पत्थर।
अपनों की ठोकरों में आयें कुछ मतलबी वफादार… पत्थर।
बन बैठे सिपाहसालार धर्म और समाज के वो जहनदार… पत्थर।

बात पत्थरों की चली।
पत्थरों के शहर में हर इंसान … पत्थर।
मर गई ख्वाहिशें उम्मीदों के पांव पड़ते- पड़ते।
वो पिघला ही नहीं जो था सबसे बड़ा था… पत्थर।

मत कुरेद मुझको क्यों हुआ… पत्थर।
जुबानों ने कितनी वेरहमी से गिराए जो… पत्थर।
जवाब उनको भी वक्त ने दे ही दिया।
आज वो भी खड़े हैं बनकर एक वेगैरत… पत्थर।

ठोकर में रहकर जो रगड़ खायें… पत्थर।
जिंदगी की आग जला कर वहीं मीलपत्थर बन जाएं… पत्थर।
पत्थर… पत्थर को भी पिघला सकता है।
अगर एक दिन बन जाए वो शाहकार …पत्थर।

— प्रीति शर्मा ‘असीम’

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]