कविता

विधाता छंद : निगाहें राह तकती है

चले आओ पनाहों में,निगाहें राह तकती है।
बताए क्या तुझे दिलवर,तुझी में जान बसती है।।
सुनो सजना तुझे मैंने, तहे दिल से पुकारा है।
चले आओ सजन मेरे, बड़ा दिलकश नजारा है।।

बहारों ने फिजाओं में,गुलों को यूँ खिलाया है।
लगे जैसे कि अम्बर में,घटा घनघोर छाया है।।
चले आओ सनम मेरे,बड़ा मधुरिम सवेरा है।
हमारे रूह के भीतर,पिया तेरा बसेरा है।।

बताओ बात क्या है जो, नजर को यूँ चुराए हो।
बता दो ना सनम मेरे,कसक को क्यों छुपाए हो।।
बिना देखे तुझे जानम, नयन प्रतिपल बरसता है।
करूँ क्या मैं बता दो तुम,जिया मेरा तड़पता है।।

करूँ मैं बंदगी तेरी, फकत इतनी इनायत है।
किसी से भी मुझे हमदम,नहीं कोई शिकायत है।।
जरा कर दो इशारा तुम,मिटा दूँ हर अलम तेरे।
लुटा दूँ हर खुशी अपनी,तुझी पे ओ सनम मेरे।।

— कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

कुमकुम कुमारी "काव्याकृति"

मुंगेर, बिहार