कहां गये वो दिन
आज बहुत दिन बाद मंजरी मायेके जा रही थी । वह देश से ही बाहर थी । जब भारत लौटी अपने सब काम से निपट कर सोचा चलो बहुत साल बाद आई हूँ पूरे परिवार से मिलती हूँ । फोन पर सबकी बाते पता चल जाती थी फिर भी लम्बी बात नहीं होती थी । मां का स्वर्गवास होगया। बड़ी मां और बड़े पापा भी नहीं रहे । बहुत रोयी थी वह । जैसे ही उसे पुनीत से पता चला कि अब वह भारत जाकर रहेगे तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा ।
पुराने दिन याद आते रहे तीनों चाचियां, मां और बड़ी मां सब कितने मिलजुल कर रहते थे । सब त्यौहार पर क्या गजब का हंगामा होता था । घर में इतने भाई बहन मस्ती ही मस्ती । उसके दोनों भाईयों की शादी हो गयी उसकी भी शादी हो गयी और वह विदेश चली गयी ।
आज जब वह स्टेशन उतरी तो बस जल्दी सबसे मिलने की थी। घर पहुँची एक अजीब सी शान्ति थी आंगन में दीवार लग गयी थी। दोनों भाभियां और बच्चे आंगन में आ गये पर चेहरों में अधिक उल्लास नहीं । थोड़ी सी बात करने के बाद बड़ी भाभी ने मंजरी से कहा- ‘दीदी आप छोटी के पास रूकेगी या मेरे पास?’
मंजरी एकदम सन्नाटे में आगयी वह बोली- ‘क्या तुम दोनों साथ नहीं रहती और चाचियां कहां हैं?’
बड़ी भाभी ने कहा- ‘अरे सब अलग रहते हैं इतना बड़ा परिवार कैसे साथ रह सकता है । हमारी अपनी जिन्दगी है।’
वह सोच रही थी मै इतने साल बाहर रही वहां परिवार के लिये तरस गयी सब भाई बहनो के साथ बिताये पल याद आते रहे यहाँ सब पाश्चात्य संस्कृति में रंग गये । कहां गये वो दिन ।
— डा. मधु आंधीवाल