बेपनाह इश्क
बेपनाह इश्क का है ये मंजर
प्रेमी के लिये समाज बना खंजर
फिर भी प्रेम प्रीत हम बरसायेगों
एक दुजै के साँसों में खो जायेगें
हर कोई है लैला हर कोई मज़नूं
चमक रहा है अंधेरे में जैसे जूगनूं
कोई चुपके चुपके घर है बसाता
कोई जगत में है प्रेम रास रचाता
प्रेम दरिया में एक दुजै संग बह जायें
तेरे ज़ुल्फों के जंगल में भटक जायें
प्यार मोहब्बत का नाजुक ये बंधन
जन्म जन्म का लिखा है गठबंधन
कल भी आये थे लेकर तेरा ही साथ
कल भी होगी बेपनाह् इश्क की बात
ये है हमारा सच्चा प्रेम ओ हमदम
ना तोड़ेगें मोहब्बत में ये बन्धन
क्या कर लेगा जालिम ये संसार
फिजां में बह रही है प्यार की बहार
हमें किसी से ना है कोई उलझन्
बात बात में लुटा देगें तन मन धन
एक दुजै के हम आयेगें काम
अपना प्यार पायेगा अपनी अंजाम
एक दुजै के बाँहों में हम खो जायें
प्रीत रीत में मुकाम अलग बनायें
— उदय किशोर साह