कविता

कविता

चलते चलते राहों में देखा मैनें जिंदगी को,
वो मेरी मंजिल की राहों में गुनगुना रही थी ,
वो मुझसे नजरें बचाकर,
मेरे हालातों पे मुस्कुरा रही थी ।
फिर कई वर्षों के बाद मुझे आई समझ,
वो मुझे लोरी सुना कर बहला रही थी ।
जब मैनें उससे पुछा,
क्यों मुझसे हो खफा?
तो वो मुझे जिंदगी की यथार्थ समझा रही थी ,
वो बोली अरे पगले मैं तो तुझे
जीना सीखा रही थी ।