मुक्तक/दोहा

दोहे “हिन्दी का उत्थान”

दोहे “हिन्दी का उत्थान”

साधक कभी न हारता, साधन जाता हार।
सच्ची निष्ठा से मिले, जीवन का आधार।1।

लगे हमारे देश में, रोटी के उद्योग।
आते टुकड़े बीनने, यहाँ विदेशी लोग।2।

दुःख और अनुराग की, होती कथा विचित्र।
लेकिन होते मनुज के, ये दोनों ही मित्र।3।

जनता की है दुर्दशा, जन-जीवन बेहाल।
कूड़ा-करकट बीनते, भारत माँ के लाल।4।

खाली गया न आज तक, कभी शब्द का वार।
शब्दों के आगे कभी, टिकी नहीं तलवार।5।

दोहों के कारण हुआ, हिन्दी का उत्थान।
दोहाकारों का करूँ, मैं मन से सम्मान।6।

आँधी आयी जोर से, बिगड़ गये हालात।
बेमौसम होने लगी, ओलों की बरसात।7।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है