दोहे “हिन्दी का उत्थान”
दोहे “हिन्दी का उत्थान”
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साधक कभी न हारता, साधन जाता हार।
सच्ची निष्ठा से मिले, जीवन का आधार।1।
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लगे हमारे देश में, रोटी के उद्योग।
आते टुकड़े बीनने, यहाँ विदेशी लोग।2।
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दुःख और अनुराग की, होती कथा विचित्र।
लेकिन होते मनुज के, ये दोनों ही मित्र।3।
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जनता की है दुर्दशा, जन-जीवन बेहाल।
कूड़ा-करकट बीनते, भारत माँ के लाल।4।
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खाली गया न आज तक, कभी शब्द का वार।
शब्दों के आगे कभी, टिकी नहीं तलवार।5।
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दोहों के कारण हुआ, हिन्दी का उत्थान।
दोहाकारों का करूँ, मैं मन से सम्मान।6।
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आँधी आयी जोर से, बिगड़ गये हालात।
बेमौसम होने लगी, ओलों की बरसात।7।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)